आज कुछ लोगों की बात सुन कर मन सुन्न हो गया है,
पर फिर लंबी बातों को सुनते हुए विश्वास किया कि कुछ तो सच होगा फिर हिम्मत जुटा कर यहां आया हु,,,,,
पर
क्यों
कैसे
क्यों
किसलिए
ये सब मन मै चलता रहा, एक तूफान सा उठने लगा कि
आखिर कैसे एक मां ये सब कर जाती है,
उसके हाथ तक नही कांपते,
उसकी रूह नहीं सहमती,
क्या उसके अंदर दिल नहीं होता,
इस बात मै क्या उतनी ही सच्चाई है,
जितनी समाज मै ओर न्यायालयो मै नजर आती है,
आईना लेकर बैठा जब तलाश करने इन खामियों को तो समझ आया कि इतना फ़र्क कैसे कोई लाया है वो मां जिसका एक बेटा ओर एक बेटी है फिर भी विचारों मै इतना विरोधाभास कैसे आया है,
खुद के बेटे की बहु के लिए नियम कायदे घर की मान मर्यादा सब रखती है वो और बेटी के लिए ससुराल के वो ही सब नियम कायदे उस मां को दकियानूसी बाते लगते है,,,,,,,,
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ये घटना आटा साटा जैसी प्रथा से जुड़ी हुई है
इसका अर्थ होता है एक हाथ लड़की दो एक हाथ लड़की लो,,
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सोचने वाली बात है क्या ऐसे भेदभाव से मां के आंचल में बच्चे पलते है,,,,
पर विचार आता है कि
तो क्यों वो अपनी बहु को भी उसकी सोच सा क्यों नहीं बना पाई,
क्यों बहु को वो खुलापन नहीं दे पाई जो वो बेटी को दिलवाना चाह रही है,
क्यों अपनी बहु के लिए वो नियम कायदे लागू होना सही होता है ओर बेटी पर हो तो गलत,
क्यों बेटी के ही मन मै मां ने ये गलत सोच पनपाई,
ओर किसके संस्कार से ओर किस हैसियत से वो उसे इतनी गलत सीख दे पाई,,,,,
शायद यही वजह है कि,
सबने ये सच माना है,
सबने इसको सच जाना है,
मां ही बेटी का घर तोड़ती है,
मां ही बेटी का भाग्य फोड़ती है,
ये सबने जाना है ओर इसे शतप्रतिशत सच माना है,,,,,,
समझ से परे है कि कहा जा कर वो अपने पाप का प्रायश्चित करेगी,
कितने कर्मों की निर्जरा करेगी आखिर वो,,
ओर क्या इंसानों की अदालत से बचकर वो ये तो नहीं समझ लेगी कि भगवान की अदालत से वो बच पाएगी,,,,,,,, 🥺🥺🥺🥺🥺